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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : - (१३) भगवंत जहां जहां विचरते हैं वहां संवर्तकजाति का पवन एक योजन प्रमाण पृथ्वी को शुद्ध कर ( कचरा आदि दूर कर ) सुगंधित, शीतल और मन्द मन्द तथा अनुकूल अवस्था में बहता है जिससे सर्व प्राणियों के लिये सुखदायक होता है, इसके लिये श्रीसमवायांग सूत्र में कहा है कि-सीयलेणं सुहफासेणं सुरभिणा मारुपण जोयण परीमंडलं सबउ समंता पमन्जित्ति । ... शीतल, सुखस्पर्शक और सुगंधित पवन सर्व दिशाओं में चारों ओर एक एक योजन भूमि को प्रमार्जन करता है। . (१४) जगद्गुरु जिनेश्वर जहां जहां संचार करते हैं वहां चास, मोर और पोपट आदि पक्षी प्रभुकी प्रदक्षिणा करते हैं।
(१५) जिस स्थान पर प्रभु विराजते हैं वहां धूलिका उड़ने से रोकने के लिये मेघकुमार देव धनसारादियुक्त गंधोदक की वृष्टि करते हैं।
(१६ ) समवसरण की भूमि में चंपक आदि पांच रंग के पुष्पों की जानु प्रमाण (घुटने तक) वृष्टि होती है । इस में किसी को शंका हो कि “ विकस्वर और मनोहर पुष्पों के समूह से व्याप्त एक योजन प्रमाण समवसरण की पृथ्वी पर जीवदया के रसिक चित्तवाले मुनियों का रहना तथा आना जाना किस प्रकार उचित होगा। क्यों कि इससे तो जीवों का