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________________ व्याख्यान ४९ : : ४३७ : हाथ से विषपान कराये और उसका पिता उसका गला घोट दे तो उसे यह स्वर्णमय पुरुष तथा एक करोड़ स्वर्णमोहर दी जायगी । उसी नगर में एक महादरिद्री वरदत्त नामक ब्राह्मण रहता था, जिसके रुद्रदत्ता नामक स्त्री थी । वे दोनो अत्यन्त निर्दय थे । उनके सात पुत्र थे । उपरोक्त घोषणा सुन कर वरदत्तने अपनी स्त्री से कहा कि हे प्रिया ! छोटे पुत्र को देकर यह सर्व द्रव्य हम क्यों न लेतें क्योंकि द्रव्य का माहात्म्य लोकोत्तर हैं। कहा भी है किपूज्यते यदपूज्योऽपि, यदगम्योऽपि गम्यते । वंद्यते यदवंद्योऽपि तत्प्रभावो धनस्य च ॥ १ ॥ भावार्थ:- अपूज्य का पूजा जाना, अगम्य का गमन होना और अवध का वंदित होना यह सर्व धन का ही प्रभाव है । - यह सुन कर निर्दयता के कारण उसने भी पति के वचनों को स्वीकार कर लिया । तत्पश्चात् ब्राह्मणने घोषणा · करनेवाले से कहा कि मुझे द्रव्य देकर इस पुत्र को लेजाओ । इस पर लोगोंने कहा कि जब तेरी स्त्री इसको विषपान करावेगी और तू इसका गला घोटेगा तब ही तुझको यह द्रव्य दिया जायगा, अन्यथा नहीं । ब्राह्मणने यह बात स्वीकार की । उस समय अपने माता-पिता के यह वचन सुन कर
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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