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________________ . : ४३० : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : रूप किये तो इन्द्रने भी चार रूप किये । अन्त में इन्द्रने जब अवधिज्ञान से देखा तो हाथी को गैरिक तपस्वी का जीव होना जान तर्जना की तो उसने अपना स्वाभाविक रूप बनाया। वहां से चव कर वह इन्द्र महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य होकर सिद्धिपद को प्राप्त करेगा। यह कथा भगवतीसूत्र में विस्तारपूर्वक कही गई है। कई लोग राजाज्ञा होने पर भी अपने व्रत का भंग कदापि नहीं करते हैं । इस पर कोशा गणिका की कथा प्रसिद्ध है-- कोशा गणिका की कथा पाडलीपुर में अनुपम रूप, लावण्य और कलाकुशलतादिक गुणरत्नों के कोश तुल्य कोशा नामक वेश्या रहेती थी। उसको प्रतिबोध करने के लिये गुरु की आज्ञा लेकर स्थूलभद्र मुनिने उसके घर जाकर चातुर्मास किया । वेश्याने उनको वश में करने के लिये अनेक प्रकार के हाव, भाव, नियम, विलास आदि किये परन्तु इससे उनका चित्त किंचिन्मात्र भी विच. लित नहीं हुआ। अन्त में मुनिने उसको प्रतिबोध कराया जिससे उसने बारह व्रत धारण कर चोथे व्रत के लिये राजाज्ञा से आये हुए पुरुष के अतिरिक्त अन्य पुरुषों का संग नहीं करने का नियम ग्रहण किया । एक बार कोशा के ग्रहण किये हुए व्रत का भंग करने
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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