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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : करेंगे। उसके मित्र तथा अनंगलेखा आदि भी देवगति पाकर अनुक्रम से मोक्षसुख को प्राप्त करेंगे। ___श्रीजिनेन्द्र के मार्ग के विषय में “निर्वेद" शब्द का अर्थ "संसार पर विराग होना" ऐसा किया गया है। उस निर्वेदरूप भावसिंह का आश्रय करनेवाले हरिवाहन राजाने शीघतया सर्वार्थसिद्धि विमान को प्राप्त किया उसी प्रकार अन्य प्राणियों को भी निर्वेद के विषय में दृढ़ श्रद्धा रखनी चाहिये। इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे त्रयश्चत्वारिंशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ४३ ॥
व्याख्यान ४४ वां
अनुकम्पा नामक चोथा लक्षण दीनदुःस्थितदारिद्र-प्राप्तानां प्राणिनां सदा । दुःखनिवारणे वाञ्छा, सानुकंपाभिधीयते ॥१॥
भावार्थ:--दीन, दुःखी और दरिद्र प्राणियों के दुःख निवारण की निरन्तर इच्छा रखना अनुकंपा कहलाती है । कार्या मोक्षफले दाने, पात्रापात्रविचारणा । दयादानं तु सर्वज्ञैर्न क्वापि प्रतिषिध्यते ॥१॥