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व्याख्यान ४१ वां समकित के पांच लक्षणों में से प्रथम शम
___ नामक लक्षण. शमैः शाम्यति क्रोधादीन्नपकारे महत्यपि । लक्ष्यते तेन सम्यक्त्वं, तदाद्यं लक्षणं भवेत् ॥१॥
'भावार्थ:-अपने बड़े अपकार करनेवाले पर भी शमभाव रख कर क्रोधादिक को शान्त रखना शम नामक प्रथम लक्षण कहलाता है । इसी से समकित की पहचान होती है अर्थात् जिस में ऐसा शम हो वह समकितवंत कहलाता है ।
इस प्रसंग पर निम्नलिखित कुरगडु मुनि का दृष्टान्त प्रसिद्ध है
कुरगड मुनि की कथा विशाला नगरी में किसी आचार्य का शिष्य मासक्षपण के पारणे के समय किसी एक क्षुल्लक साधु के साथ स्थंडिल जाते थे । मार्ग में प्रमाद के कारण उस तपस्वी के पैर के नीचे एक छोटे मेढ़क के आजाने से वह मारा गया, जिसको देख कर क्षुल्लक साधु उस समय चुप हो रहें । प्रतिक्रमण के समय जब उस तपस्वी साधुने उस पाप की आलोयमा नहीं ली तो उस क्षुल्लक साधुने सरण दिलाया कि-हे तपस्त्री ! तुम उस पाप की त्रिकरण शुद्धिपूर्वक आलोचना