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________________ : ३३८ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : सूतिका का कष्ट सहन करना पड़ेगा अतः यदि मैं एक ही साथ बत्तीस ही गुटिकाओं को खा जाउंगी तो मेरे बत्तीस लक्षणयुक्त एक ही पुत्र उत्पन्न होगा। ऐसा विचार कर उसने पत्तिसों गुटिकाओं को एक ही साथ खा लिया जिसके फलस्वरूप उसके एक ही साथ बत्तीस गर्भ रहे । उन गर्भो के अत्यन्त भार से उसे असह्य वेदना होने लगी इसलिये उसने कायोत्सर्ग कर उस देव को आह्वाहन किया। देवने शिघ्र ही प्रत्यक्ष हो उसको व्यथा रहित कर कहा कि-" हे सुलसा ! तुने यह बहुत बुरा कार्य किया है क्योंकि उन बत्तीस गोलियों के एक ही साथ खा लेने से तेरे एक ही साथ बत्तीस पुत्र होंगे जिनका एक ही समान आयुष्य होने से वे सब एक ही साथ मृत्यु को प्राप्त होंगे परन्तु भवितव्यता दुर्लंघ्य है ।" कहा भी है कि गुणाभिरामो यदि रामभद्रो, राज्यैकयोग्योऽपि वनं जगाम ॥ विद्याधरश्रीदशकन्धरश्च, प्रभूतदारोऽपि जहार सीताम् ॥१॥ . भावार्थ:-अनेक गुणों से सुन्दर और राज्य के योग्य रामचन्द्र को भी वन में जाना पड़ा तथा विद्याधर दशकंधर(रावण)ने उसको अनेकों सुन्दर स्त्रियों के होते हुए भी सीता का हरण किया (ये सब भवितव्यता वश ही हुआ है)।"
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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