SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : ३२२ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : सुन कर सरस्वती देवी जिस पर प्रसन्न है वे आचार्य बोले कि-" पुव्व विबुद्धण तए, जा से पच्छाइयं अंगं" (हे राजा ! आज प्रातःकाल तुम रानी के पहिले जगे थे उस समय रानी का कोई अंग उगाड़ा था जिस को तुमने खुदने ढक दिया जिस से मारे लजा के वह अभी तक म्लानमुखी है) यह सुन कर राजा आश्चर्यान्वित हो कर लजित हुआ। फिर एक बार राजाने रानी को पैरों पैरों मन्द मन्द चाल से चलती हुई देख कर सूरि से पूछा कि"बाला चंकमती पए पए कीस कुणइ मुहभंगं” (हे पूज्य ! वह स्त्री चलते समय पग पग पर मुंह को ढेड़ा करती है इसका क्या कारण है ?) इस पर गुरुने उत्तर दिया कि-" नूणं रमण पएसे मेहलिया लिबइ नह. पंति" (हे राजा ! सचमुच उसके रमणप्रदेश में-गुह्य स्थान में नखक्षत हो गये हैं, उस स्थान पर उसकी कटीमेखला घिसाती है, अतः वह चलते समय मुंह को ढेड़ा बनाती है) यह सुन कर राजा के मन में कुछ कोप प्रगट हुआ और वह गुरु से अप्रसन्न हुआ। गुरुने राजा के गुप्त कोप को जान कर उपाश्रय के दरवाजे पर एक श्लोक लिख कर वहां से विहार कर दिया । वह श्लोक इस प्रकार था। . आम स्वस्ति तवास्तु, रोहणगिरे मत्तः स्थितिं प्रच्युता ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy