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________________ व्याख्यान ३४ : : ३१३ : 1 वह सिद्धकुमार श्रेष्ठी का सर्व काम कर बड़ी रात गुजरे अपने घर पर सोने को जाया करता था । एक बार वह बहुत देर से सोने को गया तो निद्राग्रसित उसकी माता तथा स्त्रीने पूछा कि - इतना देर से क्यों आया ? इस समय कोई दरवाजा नहीं खोलता अतः जहां दरवाजा खुला हो वहां चला जा । यह सुन कर सिद्धकुमारने " बहुत अच्छा " कह कर ग्राम में भ्रमण करना आरम्भ किया कि उसने श्रीहरि - भद्रसूरि के उपाश्रय का दरवाजा खुला हुआ देखा, अतः वह सूरि के पास पहुंचा और प्रतिबोध प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण की । फिर अनुक्रम से शास्त्र का अभ्यास कर अच्छा विद्वान् होने पर तर्कशास्त्र की जिज्ञासा होने से उसने बौद्ध धर्म का रहस्य जानने के लिये हरिभद्रसूरि से आज्ञा मांगी | सूरिने उसको आज्ञा देकर कहा कि यदि बौद्ध के संग से तेरा मन फिर जायें और तुझे वह धर्म में श्रद्धा हो जाय तो हमारा वेष वापस हमको देजाना । सिद्धमुनि वह शर्त स्वीकार कर बौद्ध लोगों के पास विद्याभ्यास के लिये गया । बौद्धों के कुतर्क से उसका मन विचलित हो जाने से वह वेष लौटाने के लिये सूरि के पास जाने लगा तो उस समय बौद्ध लोगोंने भी उस से कहा कि यदि कदाच हरिभद्रसूरि तुम्हारा मन फिरा दे तो हमारा वेष भी हमको वापीस आकर लौट जाना । उनकी शर्त भी मंजूर कर वह हरिभद्रसूरि के समीप गया तो सूरिने उसके कुतर्क का निवारण कर उसको फिर से समकित
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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