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________________ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर । को समकित के विषय में कवि नामक आठवां प्रभावक कहा जाता है। कवि दो प्रकार के हैं। एक सत्य अर्थ का वर्णन करनेवाले और असत्य अर्थ का वर्णन करनेवाले। उन में से जिन मत के रहस्य को जान कर सद्भुत अर्थवाले शास्त्र के रचयिता को सत्यार्थ का वर्णन करनेवाले जानना चाहिये । इस प्रकार के सत्यार्थवाले श्रीहेमचन्द्रसरिने त्रेसठ शलाका-पुरुष चरित्र, और शब्दानुशासन व्याकरण आदि तीन करोड़ ग्रन्थ बनाये हैं । श्रीउमास्वाति वाचकने तच्चार्थ आदि पांच सो ग्रन्थ, वादी देवमूरिने चोरासी हजार श्लोकवाला स्याद्वादरत्नाकर ग्रन्थ तथा श्रीहरिभद्रसूरिने चौदह सो चवालीस ग्रन्थ बनाये हैं। श्री हरिभद्रसूरि की कथा निम्न लिखित प्रकार से है। श्रीहरिभद्रसूरि की कथा चित्रकूट (चितोड़गढ) में हरिभद्र नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह चौदह विद्या में निपुण और सर्व शास्त्रों का ज्ञाता था, अतः मानों अपना पेट न फूट जाय इस भय से अपने पेट पर लोहे का पट्टा बांधे रहता था और यह प्रतिज्ञा कर इधर उधर भ्रमण किया करता था कि-यदि मैं किसी का १ ग्रन्थ शब्द श्लोकवाचक है ऐसा कई पुरुष कहते हैं, अन्यत्र साढ़े तीन करोड़ भी लिखे गये हैं।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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