________________
व्याख्यान ३२ :
: २८९ :
का नाम हेमचन्द्रसूरि रक्खा । अनुक्रम से पाटण में कुमारपाल राजा के राज्यकाल में वे वहां पहुंचे और उसके मंत्री उदयम से पूछा कि-क्या राजा कभी हमारा भी स्मरण करता है या नहीं ? उदयनने उत्तर दिया कि-कभी नहीं । इस पर सूरिने कहा कि-हे मंत्री ! आज तू राजा को एकान्त में जाकर कहना कि-आज वह नई रानी के महल में सोने को न जाय । मंत्रीने उसी प्रकार राजा को जाकर कहा । उसी रात्री को रानी के महल पर बीजली गिरी जिस से महल नष्ट हो गया और रानी भी मृत्यु को प्राप्त हुई। यह देख कर राजा को बड़ा भारी आश्चर्य हुआ और उसने मंत्री से पूछा कि-तुमको पहले से यह सूचना किसने दी? ऐसे उत्कृष्ट ज्ञानवाला कौन पुरुष है ? इस पर मंत्रीने हेमचन्द्रसूरि से यह बात सुनना जाहिर किया। यह सुन कर राजा शीघ्रतया हेमसूरि के पास पहुंचा और उसको प्रणाम कर कहने लगा कि-हे पूज्य ! मैं आप का अत्यन्त कृतज्ञ हूँ अतः मेरे राज्य को स्वयं ग्रहण करने की कृपा कीजिये । सूरिने कहा कि-हे राजा ! हम को राज्य ग्रहण करना मना है, परन्तुकृतज्ञत्वेन राजेन्द्र !, चेत्प्रत्युपचिकीर्षसि । आत्मनीने तदा जैनधर्मे धेहि निजं मनः ॥१॥