SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ :२६८ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर: संघ की आज्ञा से माधुवेष को छिपा कर, अवधुत का वेष धारण कर, संयम सहित मौन व्रत धारण कर मनुष्य नहीं पहचान सके इस प्रकार विचरने लगे । इस प्रकार सात वर्ष व्यतीत हो गये तब सूरि उज्जैन पहुंचे। वहां महाकालेश्वर महादेव के मन्दिर में ठहरे । महादेव को बिना प्रणाम तथा वन्दन कर उन पर पैर रख बैठ रहे जिस को देख कर उनके पुजारीने सूरि को पैर उठा नमन करने को कहा परन्तु वे मौनधारी सूरि कुछ भी न बोले और न उसके कहने पर ही ध्यान दिया । पुजारीने इस का हाल राजा से जाकर कहा। राजा आश्चर्यचकित हो वहां आया और अवधूत से कहा कि-तू महेश्वर को नमन क्यों नहीं करता ? सूरिने उत्तर दिया कि-जिस प्रकार ज्वरार्दित मनुष्य मोदक नहीं पचा सकता इसी प्रकार ये देवता भी मेरी स्तुति को सहन नहीं कर सकता है । यह सुन कर राजाने कहा कि-हे जटिल ! ऐसा असंभवित वचन क्यों बोलते हो? तुम स्तुति करो, हम भी देखते है कि-यह देव उसे किस प्रकार सहन नहीं कर सकते १ फिर सूरि बोले• स्वयंभुवं भूतसहस्रनेत्र मनेकमेकाक्षरभावलिंगम् । अव्यक्तमव्याहतविश्वलोकमनादिमध्यान्तमपुण्यपापम् ॥१॥
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy