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________________ व्याख्यान २७ : . २४७ : खड़िया (Chalk) से लिखने लगा परन्तु विस्मरण होने से . नहीं लिख सका, इससे अत्यन्त दुःखी होने से बुद्धानन्द का हृदय विदीर्ण हो गया और वह मर गया । प्रातःकाल यह वृत्तान्त शासनदेवीने मल्लसरि को बतला कर उस पर पुष्पवृष्टि की। राजाने मल्लसरि को "वादीमदभंजक" की उपाधि देकर सर्व बौद्धों को उसके देश से बाहर निकाल दिये और स्वयं जैनमतानुयायी हो गया। इसके बाद से बौद्ध लोग इस देश में कभी नहीं आये । ___ यह प्रबन्ध राजशेखरसूरिकृत ग्रन्थ में निम्नस्थ प्रकार से वर्णित है खेटक(खेड़ा)पुर में देवादित्य नामक ब्राह्मण के एक विधवा पुत्री थी, उसने किसी गुरु से सूर्य का मंत्र लेकर उसका आराधन किया, इस से सूर्यने उस पर मोहित हो उस के साथ भोग किया । इसकी उस दिव्य शक्ति से वह गर्भवती हुई । गर्भ की बात सुन कर उसके पिताने उसको बहुत । कुछ बुरा भला कहा जिस पर उसने सर्व वृत्तान्त यथाविधि कह सुनाया । यह सुन कर उसके पिताने लज्जा से उसकी पुत्री को वल्लभीपुर भेज दिया, जहां उसके एक पुत्र व एक पुत्री युग्मरूप से उत्पन्न हुए। उनके योग्य वय के होने पर पुत्र लेखशाला में पढ़ने के लिये गया तो वहां अन्य लड़के उसको 'बिना बाप का' कह कर हँसी उडाने लगे। इस
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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