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________________ व्याख्यान २५ : : २३३ : ठहरने से मध्याह्न हो गया और भोजन करने में देरी हो गई। घर आकर जब भोजन करने बैठा तो उसकी माताने उस को अपने नियम का स्मरण दिलाया। उसने उस दिन कुम्हार की टार नहीं देखी थी इसलिये वह बिना भोजन किये ही कुम्हार के घर गया लेकिन कुम्हार उस समय वहां न होकर ग्राम के बहार मिट्टी लेने को गया हुआ था । कमल भी ग्राम के बहार गया और दूर खड़ा रह कर एक खड्डे में से मिट्टी खोदते हुए कुम्हार के सिर की टार देखकर 'देखलिया देखलिया', ऐसा कहकर कमल दौड़ता हुआ वापीस घर की ओर चला गया । उस समय कुम्हार को मिट्टी खोदते हुए स्वर्णमुद्रा का निधि प्राप्त हुआ था इसलिये कमल के 'देखलिया, देखलिया' ऐसे शब्द सुनकर उसे शंका हुई कि वह इस निधि को देख गया है इस लिये अगर वह इसका हाल राजा से जा कर कहदेगा तो राजा मेरा सब धन छीन लेगा इसलिये उसने कमल को चिल्ला कर कहा कि-हे भैया कमल! इधर आ, यह सब तू ही लेजा परन्तु किसी को इसका हाल न कहना | इस से कमल को कुछ शंका होने से जब उसके समीप गया तो निधि देखा, जिस को कमलने ले लिया और कुम्हार को भी उसमें से थोड़ासा हिस्सा देकर खुश कर दिया। फिर उस सर्व द्रव्य को अपने घर लाकर कमलने विचारा कि-अहो ! पृथ्वी पर जैनधर्म ही श्रेष्ठ है कि हंसी से पालन किये हुए एक अल्प नियमद्वारा भी मुझे इतना
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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