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________________ व्याख्यान २५ : : २३१ . नामि, वक्षस्थल (स्तन), कक्षा (कांख), कंठ, गाल, दांत, ओष्ठ, नेत्र, कपाल और मस्तक इन पन्द्रह अंगों में स्त्रियों के अनुक्रम से पन्द्रह तिथियों में काम रहता है । इन में से शुक्ल पक्ष की एकम को पैर के अंगुठे काम रहता है, जहां से चढ़ता हुआ पूर्णमासी को मस्तक तक पहुंचता है और कृष्ण पक्ष की एकम को मस्तक में रहता है जहां से उतरता हुआ अमावास्या को अंगुठे पर आजाता है ।। इस प्रकार जान कर यदि स्त्री के कामवाले स्थान को मर्दन किया जाय तो वह स्त्री तत्काल वश में हो जाती है। वश में होनेवाली स्त्री के लक्षण इस प्रकार जाने जा सकते हैं। वश में होने की इच्छावाली स्त्री नेत्रों को नमाती है, पुरुष के हृदय पर पड़ती है, तथा भृकुटी को वक्र करती हुई शोभा उत्पन्न करती है और संयोग होने से लज्जा का त्याग करती है । इस प्रकार बातों में रस आने से कमल सदैव सरि के पास आने लगा और किसी वक्त श्रृंगार का, किसी वक्त इन्द्रजाल का और किसी समय दूसरा वर्णन सुनकर गुरु पर रागी हो गया। इस प्रकार मासकल्प पूर्ण हो गया तो विहार करते समय मूरिने उससे कहा कि-हे कमल ! अब हम विहार करेंगे इसलिये हमारे समागम के स्मरण के लिये तू कोई नियम ग्रहण कर । यह सुन कर हास्यप्रिय कमल हँसता हुआ बोला कि-हे पूज्य ! मेरे कई नियम हैं सो आप सुनिये । मैं अपनी इच्छा से कभी नहीं मरुंगा,
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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