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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
हूँ। मैं यहां तुम्हारे चारित्र की परीक्षा करने को आया हूँ परन्तु तुम्हारा चारित्र चलित करने में मैं अशक्त हूँ अतः मैं तुम्हारे पर प्रसन्न हूँ सो तुम मुझ से कोई भी वरदान मांगो। यह सुन कर वज्रमुनिने कहा कि मुझे कुछ भी नहीं ' चाहिये । यह सुन कर अधिक प्रसन्न हो उस देवने उनको वैक्रिय लब्धि दी और फिर से दुबारा परीक्षा कर आकाशगामिनी विद्या प्रदान की । इस प्रकार वज्रमुनिने अनेक लब्धि प्राप्त की ।
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अनुक्रम से जब वज्रमुनि आठ वर्ष के हुए तब एक समय गुरु बहिर्भूमि गये और अन्य मुनिगण गोचरी के लिये गये थे उस समय वज्रमुनि सर्व साधुओं की उपधी के पास जाकर वे जो जो सूत्र पढ़ते थे उसको उसको उद्देश कर पढ़ने लगे । बहिर्भूमि से आते हुए गुरुने वह सुनकर उन्हें महाविद्वान् जान उनको समग्र शास्त्रों का अभ्यास कराया और उनको योग्य जान सूरिपद प्रदान किया । उन वज्रस्वामी की बाणी से प्रतिबोध पाकर पांचसो मुनि उनके परि वार में सम्मिलित हुए और अन्य भी अनेक भव्य प्राणियोंने व्रत ग्रहण किये ।
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पाटलीपुर में धनश्रेष्ठि के रुक्मिणी नामक एक पुत्री थी जिसने अनेको साध्वियों के मुंह से वज्रस्वामी के गुणों की प्रशंसा सुनकर यह प्रतिज्ञा की कि मैं इस भव में वज्र -