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________________ : २२० : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : सदृश मारवाली झोली लेकर आते हुए देख कर गुरुने उस झोली में से बालक को निकाल कर अपने उत्संग में ले उसका नाम वज्रकुमार रक्खा । फिर गुरुने उस बालक को साध्वी के उपाश्रय में रक्खा । वहां झूला डालकर श्राविका उसका पालन पोषण करने लगी। वह बालक झुले में सोता हुआ साध्वीयें जो श्रुत का अभ्यास किया करती थी उनको श्रवण करने मात्र से अगीयारह अंग सीख गया। अनुक्रम से तीन वर्ष की आयु होने पर उसका पिता तथा गुरु विहार के क्रम से फिर वहां आगये। उस समय वज्रकुमार की माता सुनन्दाने आकर मुनि से अपना पुत्र मांगा परन्तु उन्होंने वापस नहीं दिया । इसलिये सुनन्दाने राजा से पुकार की। इस पर राजाने यह निश्चय किया कि-उस बालक की माता तथा पिता दोनों को सभा के समक्ष उपस्थित किया जाय और उन दोनों की उपस्थिति में वह बालक जीसके पास चला जावे उसको उसीको सौप दीया जाय । वज्रकुमार को सभा में बुलाया गया । उसकी एक ओर थोड़ी सी दूरी पर उसके पिता को और दूसरी ओर उसकी माता को बिठाई गई। सुनन्दा अपने हाथ में द्राक्ष, मिश्री, विलोने आदि लेकर अपने पुत्र को दिखाती हुई बोली कि-हे पुत्र ! यहां आ, यहां आ, ये ले । यह सुन कर लुभाती हुई माता की ओर देख कर वज्रकुमारने विचार किया कि "माता तीर्थरूप है" परन्तु यह केवल इस भव में ही सुख देसकती है जब कि
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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