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________________ व्याख्यान २३ : : २०७: यह सुन कर राजाने क्रोधयुक्त दृष्टि से धनपाल की ओर देखा । फिर सरोवर से नगर की ओर जाते हुए मार्ग में राजा का यज्ञमंडप आया । उस मंडप में एक स्थंभ से कई पशु बंधे हुए थे । उन पशुओं की पुकार सुन कर राजाने कवियों से पूछा कि-ये पशु क्या कहते हैं ? तब किसी एक कविने कहा कि-हे राजा । ये पशु कहते हैं कि अस्मान् घ्नन्तु पदे पदे, बलिकते दग्धाश्च जग्धेस्तणैरस्मत्कुक्षिररक्ष, दक्षमनुजैर्नामोच्यते पश्विति । जानीमो न कलत्रभेदविकलाः सत्क्षुत्पिपासा वयं, तेनास्मान्नय देव देवसदनंप्रार्थ्यामहे त्वामिति ॥१॥ . भावार्थ:-हमको पग पग पर बलिदान के लिये मारो क्यों कि हम तृण भक्षण से घबरा रहे हैं, हमारी कृक्षि नहीं भरती, हमको समझदार पुरुष भी पशु कर पुकारते हैं, हम क्षुधा तृषा से आकुल होकर स्त्री, माता आदि का भी भेद नहीं समझते इस लिये हे स्वामी ! हमको में ले जाओ, यह हमारी आप से प्रार्थना है। फिर राजा की आज्ञा से धनपाल बोला कि
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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