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________________ व्याख्यान २३ : घर में किसी एक स्थान पर धन गड़ा हुआ था । उसकी आवश्यकता होने से उसकी कई स्थान पर खोज की गई किन्तु नहीं मिला । समस्त घर को चारों तरफ खोद डाला लेकिन वह धन कहीं भी न मिला इससे लक्ष्मीधर अत्यन्त चिन्तातुर हो गया। एक बार स्वपरशास्त्र के पारंगत श्री जिनेश्वरसूरि का धारानगरी में पधारना हुआ। लक्ष्मीधरने उनसे धन के विषय में प्रश्न किया। इस पर सूरिने उत्तर दिया कि-यदि तू तेरे दो पुत्रो में से एक हम को दे देवे तो तुझे धन बतला दूँ। उसने सूरि के वचन को स्वीकार कर लिआ, इस लिये आचार्य महाराजने अहिबलय चक्र के अनुसार से देख कर कहा कि-अमुक स्थान पर धन हैं। उस जगह पर खोदने से लक्ष्मीधर को धन की प्राप्ति हुई परन्तु उसने अपने वचनानुसार पुत्र को नहीं दीया । कुछ समय पश्चात् जब उसका मृत्युकाल समीप आया तो उसके सूरि के साथ की हुई प्रतिज्ञा का स्मरण होने से खेदित हो कर दोनों पुत्रों से उस प्रतिज्ञा का हाल सुनाया। यह सुन कर छोटे पुत्र शोभनने कहा कि-हे पिता! मैं तुम को ऋणमुक्त करुंगा। इस पर लक्ष्मीधरने संतुष्ट हो कर शरीर छोड़ा और शोभनने बिना अपने स्वजनों को पूछे ही गुरु के समीप जा दीक्षा ग्रहण की। धारानगरी में धनपाल का बहुमान होने से गुरुने उससे भयभीत हो कर मालव देश में विहार करना छोड़
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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