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________________ व्याख्यान २१: : १९१ : श्रीश्रेणिकांसे निदधे यदधि १गंधया पण्यवधूद्भवत्वात् ॥१॥ भावार्थ:-नीच कुल में उत्पन्न हुआ पुरुष राजादिक द्वारा सम्मानित होने पर भी अपने कृत्योंद्वारा अपने नीच कुल को प्रकट करता है। देखिये वेश्या की पुत्री होने से दुर्गंधाने श्रेणिक राजा के स्कन्ध पर पैर रखा है। उस समय राजा को श्रीवीरप्रभु के वचनों का स्मरण आनेसे हँसी आगई । इस पर दुगंधा राणी तत्काल पृष्ठ से नीचे उतर कर उस अकस्मात् आनेवाली हंसी का कारण पूछा। इस पर राजाने उसको भगवान के कहे अनुसार उसके पूर्व जन्म से लगा कर हँसी आने के समय तक का सब वृत्तान्त सुनाया। जिसके सुनने से उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने राजा से आज्ञा ले कर श्रीवीरप्रभु के पास जा दीक्षा ग्रहण की। __इस प्रकार श्रेणिक राजा की रानी दुर्गंधा का चरित्र सुन कर पुन्यशाली जीवों को कदापि मुनिजुगुप्सा नहीं करना चाहिये। इत्यन्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ द्वितीयस्तंभे एकविंशतितमं व्याख्यानम् ॥ २१ ॥
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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