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________________ व्याख्यान १९ : : १७५ : चाहिये। यदि ऐसा न हो तो आपका कहा हुआ सब झूठ सिद्ध होगा । यह सुन कर प्रतिबोध को प्राप्त हुआ तिष्यगुप्त बोला कि-हे श्रावक ! तूने मुझे सच्चा बोध कराया है। श्री वीर भगवान के वाक्य में पड़ी हुई शंका अभी दूर हो गई है। फिर उस श्रावकने भक्तिपूर्वक उत्तम प्रकार से उसे पडिलाभ्या । तिष्यगुप्त गुरु के पास जाकर आलोयणा, प्रतिक्रमण कर श्रीजिनेश्वर की आज्ञानुसार विचरने लगा। गुरु के चरणों में वर्तते सम्यग मार्ग को प्राप्त कर उसका प्रतिपालन कर वह स्वर्ग में गया । हे भव्य प्राणियों ! इस तिष्यगुप्त के चरित्र को सुन कर जिनेश्वर के वचनों में किंचित्मात्र भी शंका नहीं करना चाहिये क्यों कि शंका सद्बुद्धि को मलिन करनेवाली है। यहां निह्नव का प्रसंग आने से निह्नव कब कब हुए यह बलताया जाता है। निहवों की सूचि १ श्री महावीरस्वामी के केवलज्ञान होने के पश्चात् चउदवें वर्ष में जमालि नामक निह्नव हुआ । २ सोलहवें वर्ष में तिष्यगुप्त हुआ। ३ दोसो चउदह वर्ष में अव्यक्त निव हुआ। ४ दोसो वीसवें वर्ष में शून्यवादी हुआ । ५. दोसो आठाइसवें वर्ष में एक समय में दो उपयोग कहनेवाला गंगदत्त हुआ। ६ पांचसो चवालिसवें वर्ष में नव
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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