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व्याख्यान १८ :
: १६७ अनंगलता नामक गणिका को देख कर मैं उन पर मोहित हो गया इस लिये मैंने अपना सारा धन उसको दे दिया और मैं उसके साथ विषयसुख भोगने लगा । एक बार उस गणिकाने सिंहस्थ राजा की रानी के आभूषणों देख कर अपने आभूषणों की निन्दा करते हुए रोते रोते मुझसे कहा कि-यदि तू सचमुच मेरा प्रियतम हो तो रानी के आभूषणों को लाकर मुझे दे । यह सुन कर उसके वचनो स्वीकार कर मैं रात्री के समय चोरी करने के लिये राजमहल में घुसा । उस समय राजा और रानी बातें कर रहे थे । रानीने राजा से पूछा कि-हे स्वामी ! आज आप के चहरे पर चिन्ता के चिह्न नजर आते हैं सो क्या चिन्ता है ? राजाने उत्तर दिया कि-हे प्रिया ! प्रातःकाल वज्रकर्ण मेरी खड्ग से मारा जायगा तब ही मेरी चिन्ता दूर होगी। उसकी बातों से तुम्हारी जैन धर्म में दृढ़ता देख कर चोरी को तथा उस वेश्या को छोड़ कर मैं तुरन्त ही इस बात की सूचना देने के लिये तुम्हारे पास आया हूँ, इस लिये हे वज्रकर्ण राजा! अब तुमको जैसा अच्छा लगे वैसा करो । यह सुन कर उस वज्रकर्ण राजाने उस श्रावक का अच्छा सत्कार कर उसको विदा किया और खुदने किल्ले के बाहर के पुलों को तोड़ कर सब को किल्लों में लेकर द्वार बंद कर बैठ रहा। प्रातःकाल होने पर सिंहरथ राजाने आकर उस किल्ले को घेर लिया और वज्रकर्ण के पास एक दूत भेजा । उस दतने आकर