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________________ व्याख्यान १७ : : १६१ : सुनने से अकस्मात शौच जाने की प्रेरणा हो गई । मनुष्यों की अधिक भीड़ होने से कही अन्यत्र न जासका इस लिये राजमार्ग में ही उसने यत्नपूर्वक मलोत्सर्ग कर लिया और उस पर पुष्पों का ढेर लगा कर वह आगे चला गया। उसी समय दत्त राजा उस ओर निकला जिसके घोड़े का पैर उस पुष्प के ढेर पर गिरा इससे उसमें से विष्टा उछल कर उसका छिंटा राजा के मुह में गिरा । इससे आचार्य के कहे वचनों पर विश्वास होने से उसने उसके सेवकों से पूछा कि आज कौनसा दिन हुआ ? उस पर उन्होंने उत्तर दिया कि आज सातवां दिन है । यह सुन कर राजा लज्जित होकर वापिस लौटा। दत्त राजा जब सूरि पर क्रोधित होकर राजमहल में आकर छ दिन तक एकान्त में ही रहा उस समय सर्व राजवर्ग दत्त से विरुद्ध होकर जितशत्रु को राज्यगादी पर बिठाने की कोई युक्ति ढूंढ रहे थे इससे सातवें दिन ज्योहि दत्त बाहर निकला कि शीघ्र ही उन्होंने जितशत्रु राजा को बन्धनमुक्त कर महलों में प्रवेश कराया। फिर जब दत्त मुंह में विष्टा गिर जाने से वापीस लौट कर राजमहल के समीप पहुंचा तो उस राजवर्गने दत्त को एकाएक बांध कर जितशत्रु को स्वाधीन किया। उसको देख कर हर्षित हुए जितशत्रुने उसको कुंभीपाक में डाल कर भून दिया। उसकी महापीड़ा का अनुभव कर दत्त मृत्यु प्राप्त कर नरक का ११
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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