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________________ : १५८ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : संकट में भी असत्य भाषण नहीं करते हैं। चन्दन की बू शीला पर घिसने से ही जानी सकती है और इक्षुका (Sugarcane ) का मधुर रस उसके पीले जाने पर ही निकलती है। तुरमणि नामक नगर में कालिक नामक एक ब्राह्मण रहता था, जिसकी बहिन का नाम भद्रा था। उसके दत्त नामक एक पुत्र था। कालिकद्विजने कुछ समय तक गुरु के पास धर्मोपदेश सुन कर वैराग्य प्राप्त होने से चारित्र ग्रहण किया। इससे दत्त किसी का अंकुश नहीं रहने से उद्धत हो गया और सातों व्यसनों का शिकार हो गया। कुछ समय बाद वह दत्त उस नगर के जितशत्रु नामक राजा का सेवक हुआ। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर राजाने उसको अनुक्रम से अपना प्रधान बनाया । फिर धीरे धीरे सम्पूर्ण राजवर्ग को अपने पक्ष में लेकर दत्तने राजा को पदभ्रष्ट कर स्वयं राजा बन बैठा । वह परलोक के भय से किञ्चित् मात्र भी भय न रख कर आश्रव के कार्यों में द्रव्य को व्यय करने लगा, बड़े बड़े यज्ञ कर अनेकों जीवों की हिंसा करने लगा और उसमें बलिदान होनेवाले मूक पशुओं को देखकर अत्यन्त हर्षित होने लगा। ___ इधर कालिक मुनि के बहुश्रुत होनेसे गुरुने उसे सूरि‘पद प्रदान किया । एक वार बिहार करते हुए कालिकाचार्य तुरमणिनगर के उद्यान में आया । उसका आगमन सुनकर
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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