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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : ____ " स्याद्वाद धर्म के विचार में ही चित्त रखनेवाली तथा मिथ्यादर्शन पर लेशमात्र भी राग नहीं रखनेवाली जयसेनाने मन की शुद्धि से अनुक्रम से अनन्त सुखवाले मोक्षपद को प्राप्त किया। इसी प्रकार हे भव्य प्राणी ! तुम भी मनशुद्धि को दृढ़ करो कि जिससे तुमको भी कल्याणपरम्परा प्राप्त हो।" इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादग्रंथस्य वृत्तौ प्रथमस्थंमे
पंचदशं व्याख्यानम् ॥ १५ ॥ ॥ प्रथमः स्तंभः समाप्तः ॥