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व्याख्यान १४ :
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" हे दौहित्र ( लडकी का लड़का ) ! एक क्षण भर खड़ा रह, मैं अभी इस बाव में स्नान कर आता हूं । " ऐसा कह कर चेटकराजाने बाव में जा, लोहे की मूर्ति को गर्दन में बांध कर समाधि में तत्पर होकर बाव में कूद पड़े । उसी समय धरणेन्द्रने उसको उठा लिया और अपने भुवन (पाताल) में ले गया। वहां चेटकराजाने अनशनद्वारा कालधर्म प्राप्त कर सहस्रार देवलोक में इन्द्र के सामानिक देवता हुए ।
फिर चेटकराजा का दौहित्र सुज्येष्ठा का पुत्र सत्यकि जो विद्याधर था वहां आकर समग्र नगरी के लोगों को नीलवंत पर्वत पर ले गया । फिर कूणिक राजा भी अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर उसकी राजधानी को लौट गया ।
कूलवालक भी देवगुरु की आशातना करने से और मागधिका गणिका के संग से अनेक पापकर्म कर दुर्गति में गया ।
हे भव्य प्राणियो ! यदि तुमको मोक्षसुख प्राप्ति की अभिलाषा हो तो कूलवालक साधु का अति दुरन्त चरित्र पढ़ कर महाविषम विष समान गुरुमहाराज की आशातना का त्याग करना ।
इत्यब्ददिन परिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ प्रथम स्तंभे चतुर्दशं व्याख्यानम् ॥ १४ ॥