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________________ : १३२ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : राजगृह नगरी के राजा श्रेणिकने देवताओं द्वारा दी हुई दिव्य कुण्डल की जोड़ी, अठारह चक्र (सेर ) का हार और दिव्य वस्त्रों सहित सेचनक हाथी भी अपने पुत्र हल्ल विल्ल को दे दिया । इस से क्रोधित हो कर कूणिकने कुछ प्रपंच कर उसके पिता श्रेणिक को काष्ठ के पांजरे में बन्दी बना दिया । राजा के परलोकवास होने के कुछ दिन बाद कूणिकने नई चम्पापुरी नामक पुरी बसा कर उसमें उसके काल महाकाल आदि दस भाइयों सहित रहने लगा। बाद में उसकी रानी पद्मावती के सदैव के आग्रह से प्रेरित हो कर उसने हलविल्ल से हार आदि चारों वस्तुओं की याचना की । इस पर उन दोनों बुद्धिमान् भाइयोंने यह विचार कर कि " यह याचना अनर्थ का मूल है " अपनी सब वस्तुओं को ले कर रात्रि के समय चुपके से वहां से निकल कर उनके मातामह चेटक राजा के पास विशाला नगरी में जा कर रहने लगे । कूणिक को इस की सूचना मिलने पर उसने दूत भेज कर चेटक राजा को कहलाया कि “ हल्ल विल्ल को पीछा हमारे सिपूर्द करो " चेटक राजाने उत्तर दिया कि " शरणागत दोहित्रों को मैं किस प्रकार सोंपुं ?" दूतने जब यह संदेशा कृणिक राजा के पास पहुंचाया तो वह अत्यन्त क्रोधित हो कर तीन करोड़ सुभटों की सैना सहित अपने सदृश बलवान काल महाकाल आदि दशों भाइयों को साथ ले कर चेटक राजा पर चढ़ाई करने
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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