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________________ व्याख्यान १३ : : १२५ : 1 के समय उस उद्यान के समीप जाकर उसके प्राकार के बाहर खड़ा रहा और अवनामिनी विद्याद्वारा आम्रवृक्ष की शाखा को नीचे झुका कर उस पर की केरियें तोड़ ली और उन्नामिनी विद्याद्वारा वापीस उसकी शाखा को ऊँची उठा जैसे की तैसी करदी | इस प्रकार उसने उसकी स्त्री का दोहद पूर्ण किया । इस प्रकार केरियों के ले लेने से वह आम्र रहित हो गया । सवेर में उद्यानरक्षकने उस आम्र को केरियों रहित देख कर उसका हाल राजा से निवेदन किया । राजाने अभय को बुला कर कहां कि - जिनमें ऐसी शक्ति हो वह अन्तःपुर में भी प्रवेश क्यों न कर सके ? अतः उस चोर को सात दिन में पकड़ लाओ, अन्यथा उस चोर का दण्ड तुम्हें भोगना पड़ेगा। राजा की आज्ञा अंगीकार कर अभयकुमार रातदिन नगर में घूमने लगा परन्तु चोर हाथ नहीं आया । अन्त में सातवी रात्री को किसी नट का खेल देखने के लिये जुआरी, स्त्रीलंपट, चोर और मांसलुब्धक एक स्थान पर एकत्रित हुए थे, अभयकुमार भी वहां जा पहुंचा । नट के आने में कुछ देर बाकी थी इस लिये अभयकुमारने सब लोगों से कहा कि - भाइयों ! जब तक नट नहीं आये तब तक मैं एक बात कहता हूँ सो सुनो वसन्तपुर में एक जीर्ण नामक निर्धन वणिक रहता था । उसके एक पुत्री थी । वह युवा हो गई फिर भी उसको कोई योग्य वर नहीं मीला इस लिये योग्य वर की प्राप्ति के लिये
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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