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________________ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : ज्ञानद्वारा ? उसने उत्तर दिया कि-पांचवें ज्ञानद्वारा (केवलज्ञानद्वारा)। यह सुन कर सूरिने सोचा कि-अहो ! मैने केवली की आशातना की। ऐसा कह कर उसको मिथ्या दुष्कृत दिया। फिर आचार्यने उससे पूछा कि-मेरे को मोक्ष मिलेगा या नहीं? केवलीने कहा कि-तुमको गंगा नदी पार करते हुए केवलज्ञान होगा। यह सुनकर मूरि गंगा नदी उतरने के लिये कई लोगों के साथ नाव में बैठे, परन्तु जिस तरफ वे बैठे उस तरफ नाव झुकने लगी इस से प्रत्येक और मूरि बैठे इस प्रकार प्रत्येक स्थान झुकने लगा। फिर मूरि मध्य में बैठे तो समस्त नाव डूबने लगी । आचार्यने पूर्व भव में उनकी स्त्री का अपमान किया था वह स्त्री व्यन्तरी हो गई थी जो इस प्रकार सूरि के लिये उपद्रव करती थी। इसलिये लोगोंने आचार्य को उठाकर जल में फेंक दिया । उस समय उक्त व्यन्तरीने जल में शूली खड़ी कर आचार्य को उसमें पिरो लिये । फिर भी आचार्यने कहा कि-अहो ! मेरे देह के रुधिर के गिरने से अप्काय के जीवों की मृत्यु होती है, इस प्रकार जीवदया की भावना करने लगें । इस प्रकार शुभ भाव की वृद्धि होने से सर्व कर्मों का क्षय कर अंत में केवली हो कर वे शीघ्र ही मोक्षगामी हुए। इस समय समीपवर्ती देवताओंने उनके केवलज्ञान का महोत्सव किया। इसी समय से वह प्रयाग नामक तीर्थ बना । वहां पर अन्यदर्शनी स्वर्गसुख मिलने के हेतु से करवत रखाते हैं।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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