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________________ इस चौदह राजलोक में अनन्तानन्त आत्माएँ रही हुई हैं, जिन्हें जीवास्तिकाय द्रव्य कहते हैं । जीवों के मुख्य दो भेद हैं-मुक्त और संसारी । मुक्तात्माएँ चौदह राजलोक के अग्रभाग में अपने पूर्व त्यक्त देह की दो तिहाई अवगाहना में रही हुई हैं। वे प्रात्मा की शुद्धावस्था को प्राप्त होने से अरूपी अर्थात् निराकार हैं । सिद्धात्मा के आत्मप्रदेश अपनी निश्चित अवगाहना में रहे हुए हैं। वे प्रात्माएँ संसार में पुनः जन्म नहीं लेती हैं, वे तो अपने स्वभाव में सदा के लिए स्थिर हैं। इस दृष्टि से मुक्तात्माएँ प्रचर अर्थात् स्थिर हैं। ___संसारी आत्माएँ कर्म से बँधी हुई होने के कारण इस संसार में परिभ्रमण करती रहती हैं। उनका इस संसार में कोई एक निश्चित शाश्वत स्थान नहीं है। एक सरकारी कर्मचारी की भाँति थोड़े-थोड़े समय के बाद उनका स्थान-परिवर्तन होता रहता है । एक योनि से दूसरी योनि में, एक गति से दूसरी गति में जीवात्मा परिभ्रमण करती रहती है। ____संसारी जीवों में भी जीवों के मुख्य दो भेद हैं-त्रस और स्थावर। त्रस जीव अपनी इच्छानुसार कहीं जा पा सकता है, जबकि स्थावर अपनी इच्छानुसार गमनागमन नहीं कर सकता है। इस प्रकार इस लोकाकाश में अनेकविध चर और अचर द्रव्य रहे हुए हैं। उन सब द्रव्यों को धारण करके यह लोकाकाश, अनादिकाल शान्त सुधारस विवेचन-५८
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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