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________________ ये सभी नरक अधो-अधो (नीचे-नीचे) छत्राकार रूप में हैं। इन सातों नरकों की चौड़ाई क्रमश: बढ़ती जाती है। सातवीं नरक-भूमि की चौड़ाई ७ राजलोक प्रमाण है। सातवीं नरक के बाद घनोदधि, घनवात और तनवात पाता है और उसके बाद अलोक का प्रारम्भ हो जाता है । वेदना-तीव्र अशाता के उदय से इस पृथ्वीतल पर मनुष्य अथवा तिर्यंच को जो वेदना होती है, उससे अनन्तगुणी वेदना पहली नरक में है और उससे अनेक गुणी पीड़ा दूसरी नरक में है, इस प्रकार पीड़ा क्रमशः बढ़ती ही जाती है। नरक के जीवों को तीन प्रकार की पीड़ाएँ होती हैं (1) क्षेत्रज वेदना-नरक के जीवों को क्षेत्रजन्य १० प्रकार की वेदनाएँ होती हैं--(१) भयंकर शीत (२) भयंकर गर्मी (३) अत्यन्त क्षुधा (४) अत्यन्त तृष्णा (५) अत्यन्त खाज (६) पराधीनता (७) ताप (८) दाह (६) भय और (१०) शोक को घोर पीड़ाएँ नरक के जीव प्रतिक्षण भोगते हैं। पौष मास की कड़कड़ाहट की ठण्डी में हिमालय पर्वत पर कोई व्यक्ति जिस ठण्डी का अनुभव करता है, उससे अनन्त गुणी ठण्डी नरक का जीव अनुभव करता है। अग्नि के भयंकर ताप से भी अधिक भयंकर गर्मी वहाँ पर है। अत्यन्त भूख और प्यास से वे पीड़ित होते हैं। ____2. पारस्परिक-नरक में रहे सम्यग्दृष्टि जीवों को अवधिज्ञान और मिथ्यादृष्टि जीवों को विभंगज्ञान होता है। मिथ्यादृष्टि आत्माएँ अपने ज्ञान का उपयोग अपने शत्रु की शान्त सुधारस विवेचन-४२
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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