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________________ का नाम पंकप्रभा है। यहाँ चौथे नरक के जीव रहते हैं। इस नरक-पृथ्वी के पिंड की मोटाई एक लाख बीस हजार योजन है, इसमें कुल सात प्रतर और दस लाख नरकावास हैं। यहाँ के नारकों का जघन्य आयुष्य ७ सागरोपम और उत्कृष्ट प्रायुष्य १० सागरोपम है। इस नरक का नाम 'अंजना' है । (५) धूमप्रभा-धुएँ की बहुलता होने के कारण इस पृथ्वी का नाम धूमप्रभा है। इस पृथ्वी का पिंड १ लाख १८ हजार योजन का है। यहाँ ५वीं नरक के जीव रहते हैं। इस पृथ्वी में पाँच प्रतर और तीन लाख नरकावास हैं। यहाँ के नारकों का जघन्यप्रायुष्य १० सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य १७ सागरोपम है। इस नरक का नाम 'रिष्टा' है । (६) तमःप्रभा-अन्धकार को बहुलता के कारण इस पृथ्वी का नाम तमःप्रभा है। यहाँ छठे नरक के जीव रहते हैं। इस पृथ्वी का पिण्ड १ लाख १६ हजार योजन का है। इसमें कुल तीन प्रतर और 8888५ नरकावास हैं। यहाँ के नारकों का जघन्य प्रायुष्य १७ सागरोपम और उत्कृष्ट अायुष्य २२ सागरोपम है। इस नरक का नाम 'मघो' है। (७) तमस्तमःप्रभा-यहाँ घनघोर अन्धकार होने से इस पृथ्वी का नाम तमस्तमःप्रभा है। इस पृथ्वी का पिण्ड १ लाख ८ हजार योजन है। इसमें एक प्रतर और पाँच नरकावास हैं। यहाँ के नारकों का जघन्य आयुष्य २२ सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य ३३ सागरोपम है । शान्त सुधारस विवेचन-४१
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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