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________________ विवेचन रोग, जरा व मृत्यु का सतत भय इस संसार में अधिकांश जीवों की यह मान्यता है कि ज्योंज्यों धन बढ़ता है, त्यों-त्यों सुख बढ़ता है । धन की वृद्धि-सुख की वृद्धि, इस फार्मूले के अनुसार ही अधिकांश व्यक्तियों का जीवन चलता है। वर्तमान के इस भौतिकवाद में सारी दुनिया धन के पीछे पागल है। येन केन प्रकारेण वह धन के अर्जन में लगी हुई है, परन्तु दुनिया भूल गई है कि धन से सुख के साधन जुटाए जा सकते हैं किन्तु सुख नहीं। धन से वातानुकूलित शयनकक्ष खरीदा जा सकता है, किन्तु नींद नहीं। धन से मित्र खरीदे जा सकते हैं, किन्तु मैत्री नहीं। धन से दवा खरीदी जा सकती है, किन्तु जीवन नहीं। धन से भोजन खरीदा जा सकता है, किन्तु भूख नहीं। परन्तु अज्ञानी लोगों की यही भ्रान्ति है कि धन से सब कुछ खरीदा जा सकता है और इस मान्यतानुसार ही व्यक्ति धन को जुटाने में व्यस्त रहता है । परन्तु 'मृत्यु' मनुष्य की आशाओं के महल को क्षण भर में धराशायी कर देती है। 'रामू' नाम का एक हट्टा-कट्टा मजदूर था""परन्तु मन्दभाग्य से उसे विशेष मजदूरी नहीं मिल पाती थी। एक बार एक सेठ बाजार में घी खरीदने के लिए पाए। उन्होंने मिट्टी के एक शान्त सुधारस विवेचन-१८६
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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