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________________ है, उन सबकी वह अवश्य अनुमोदना करती है। यहाँ तक कि मिथ्यादृष्टि में भी दया, दान, परोपकार की वृत्ति को देखकर वह उसकी अवश्य अनुमोदना करती है। जो आत्माएँ अभी तक जिनधर्म को प्राप्त नहीं हुई हैं, उन आत्माओं में भी मार्गानुसारिता आदि के गुण हो सकते हैं, उनके भी विनय, नम्रता, दया-दान आदि गुण अवश्य अनुमोदनीय हैं। ___गुणानुरागी आत्मा जहाँ-जहाँ गुण देखती है, उसे उस गुण के प्रति अवश्य अनुराग होता है। जिस प्रकार स्वर्ण का अभिलाषी कीचड़ को न देखकर स्वर्ण को ही देखता है और कीचड़ में पड़े हुए स्वर्ण को भी उठा लेता है। जिस प्रकार उद्यान के माली की दृष्टि गुलाब के फूलों पर होती है, न कि काँटों पर । जिस प्रकार कमल के इच्छुक की दृष्टि कमल पर होती है, न कि कीचड़ पर; उसी प्रकार गुणग्राही व्यक्ति की दृष्टि भी गुणों पर ही होती है। अनेक दोषों के बीच भी यदि उसे एक भी गुण दिखाई देता है, तो वह समस्त दोषों की उपेक्षा करके गुण को ग्रहण कर लेता है। एक बार किसी देव ने गुणानुरागी कृष्ण महाराजा की परीक्षा करनी चाही। कृष्ण महाराजा रथ में बैठकर जा रहे थे। मार्ग में वह देव अपनी देवमाया से मरे हुए कुत्ते का रूप धारण कर मार्ग के बीच में पड़ गया। मरे हुए कुत्ते की दुर्गन्ध से वहाँ समस्त वातावरण दुर्गन्धमय बन गया। सभी लोग उस कुत्ते से घृणा करने लगे, परन्तु कृष्ण महाराजा ने कहा- "अहो ! इस कुत्ते के दांत कितने चमकीले हैं?" शान्त सुधारस विवेचन-१६७
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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