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________________ मधुर और प्रभावक वाणी के द्वारा वे अनेक भव्यात्मानों को मोक्षमार्ग में जोड़ते हैं । मोक्षमार्ग दिखाकर वे भव्य जीवों पर एक महान् उपकार करते हैं । वे अत्यन्त शान्त होते हैं । उनकी सौम्य प्रकृति को देखकर अनेक जीवों के हृदय में उनके प्रति आकर्षण पैदा हो जाता है । इसके साथ ही वे दान्त होते हैं । अपने मन पर उनका पूर्ण नियंत्रण होता है । मन से वे कभी अशुभ चिन्तन नहीं करते हैं । इसके साथ ही वे 'जिताक्ष' अर्थात् इन्द्रियविजेता भी होते हैं । इस प्रकार उपर्युक्त गुणों से युक्त महात्मानों से ही यह जिन - शासन शोभता है। ऐसे महात्मा जिनशासन के शृंगार हैं । वे जिनशासन की प्रभावना में अभिवृद्धि करते हैं । दानं शीलं तपो ये विदधति गृहिणी भावनां भावयन्ति, धर्मं धन्याश्चतुर्धा श्रुतसमुपचितश्रद्धयाऽऽराधयन्ति । साध्व्यः श्राद्धचश्च धन्याः श्रुतविशदधिया शीलमुद्भावयन्त्य स्तान् सर्वान् मुक्तगर्वाः प्रतिदिनमसकृद् भाग्यभाजः स्तुवन्ति ॥ १६० ॥ ( त्रग्धरावृत्तम्) शान्त सुधारस विवेचन- १६२
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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