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________________ वह वाणी सुननी पड़ी। परन्तु उस वाणी ने उसे मौत के मुंह में जाने से बचा दिया। उसे फंसाने के लिए अभयकुमार ने षड्यंत्र रचा था, परन्तु प्रभु महावीर की वाणी के कारण उस जाल में से वह बच गया।। इसके बाद उसने सोचा 'अनचाहे भी मैंने प्रभु महावीर को वाणी सुनी और उसने मेरे प्राण बचा दिए""यदि मैं उनके प्रति पूर्ण समर्पित बन जाऊँ तो अवश्य ही इस भवसागर से तिर जाऊँगा'.."और उसने प्रभु के चरणों में आत्मसमर्पण कर अपनी आत्मा का कल्याण कर लिया। प्रभु की वाणी अमृतवाणी है। शास्त्र में कहा गया हैप्रभु की वाणी के श्रवण से छह मास की भूख और प्यास भी शान्त हो जाती है। आत्मा के समस्त सन्देहों को छेदने वाली यह जिनवाणी है। जिनवाणी का भावपूर्वक पान करने वाली आत्मा अल्पभवों में ही भव-सागर से पार हो जाती है । अपूर्व महिमा है जिनवाणी श्रवण की। भोगी को योगी और शैतान को सन्त बनाने वाली यह जिनवारणी है। किन्तु कुमत मद की मदिरा का पान करने वाले इस जिनवाणी के अमृत का पान नहीं कर पाते हैं और वे कुमत की मदिरा का पान कर अपनी आत्मा को दुर्गति के गर्त में धकेल देते हैं। बेचारी वे आत्माएँ दया की पात्र हैं, जो अमृत का त्याग कर कुमत मत की मदिरा का पान कर रही हैं। सुधारस-१० शान्त सुधारस विवेचन-१४५
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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