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________________ 10 धर्म भावना दानं च शीलं च तपश्च भावो , धर्मश्चतुर्धा जिनबान्धवेन । निरूपितो यो जगतां हिताय , स मानसे मे रमतामजस्रम् ॥१२५॥ (उपजाति) अर्थ-जिनेश्वर बन्धुओं ने जगत् के हित के लिए दान, शील, तप और भाव स्वरूप चार प्रकार का धर्म बतलाया है, वह (धर्म) मेरे मन में सदा रमण करे ।। १२५ ।। विवेचन धर्म के चार प्रकार __लोक-व्यवहार में चार प्रकार के पुरुषार्थ बताये गए हैंअर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। अर्थ और काम अनर्थ के मूल होने से वास्तव में पुरुषार्थ ही नहीं हैं। मुमुक्षु आत्मा के लिए तो दो ही पुरुषार्थ हैं-धर्म और मोक्ष । मोक्ष साध्य है और धर्म उसका साधन । सुधारस-१ शान्त सुधारस विवेचन-१
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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