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________________ बाद भी सद्धर्म-श्रवण की इच्छा होना अत्यन्त दुर्लभ है, क्योंकि मैथुन, परिग्रह, भय और पाहार संज्ञा रूप पीड़ा से सम्पूर्ण जगत् अत्यन्त दुर्दशा में डूबा हुआ है ।। १६६ ।। विवेचन धर्मतत्त्व की जिज्ञासा भी दुर्लभ है कदाचित् पुण्ययोग से आर्यदेश और उत्तम कुल भी मिल जाय, फिर भी 'धर्मश्रवण की इच्छा होना' सुलभ कहाँ है ? क्योंकि आहार, भय, परिग्रह और मैथुन संज्ञाओं के वशीभूत होने के कारण संसारी जीवों की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। अनादिकाल से संसारी जीव आहार आदि संज्ञाओं से पराधीन है। नरक में भय संज्ञा, देवगति में परिग्रह संज्ञा, मनुष्य में मैथुन संज्ञा और तिर्यंच में आहार संज्ञा की पराधीनता है। प्रत्येक जीवात्मा का चारों गति में परिभ्रमण हो रहा है और इस कारण प्रत्येक जीव में चारों संज्ञाओं की प्रबलता है। मनुष्य-जन्म, आर्यदेश और उत्तम कुल मिल जाने के बाद भी आहार आदि संज्ञाओं की प्रबलता के कारण व्यक्ति धर्मश्रवण में उत्सुक नहीं बन पाता है । आहार संज्ञा की प्रबलता के कारण व्यक्ति भक्ष्य-अभक्ष्य और पेय-अपेय का विचार नहीं कर पाता है। परिग्रह संज्ञा की प्रबलता के कारण व्यक्ति अन्यान्य उपायों से धनार्जन में व्यस्त रहता है। धन की तीव्र ममता के कारण वह न्याय शान्त सुधारस विवेचन-६४
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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