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________________ उनको भी यमराज उठा ले जाता है, उस समय उनका विराट सैन्य भी उनको मृत्यु से बचा नहीं पाता है। सम्राट सिकंदर "विश्वविजेता" बनने के अपने स्वप्न को साकार करने हेतु प्रयत्नशील था। विशाल सैन्यदल का वह मालिक बन चुका था, लेकिन एक दिन वह मृत्यु-शय्या पर गिर पड़ता है और उसे इस सत्य की अनुभूति हो जाती है कि धन, डॉक्टर और सैन्यबल भी उसे मृत्यु से बचा नहीं सकते हैं। अतः उसने अपनी शव-यात्रा में अपने दोनों हाथों को बाहर खुले रखने की आज्ञा की थी, इसके साथ उसने अपनी शव-यात्रा में सुप्रसिद्ध वैद्य-चिकित्सकों को तथा विराट् सैन्यबल को साथ में रखने का आदेश दिया था इसीलिए कि वह दुनिया को सत्य सिखाना चाहता था कि (1) धन मृत्यु से बचा नहीं सकता है । (2) वैद्य मृत्यु से बचा नहीं सकते हैं और (3) विराट् सैन्यबल भी मृत्यु से बचा नहीं सकता है। प्रविशति वज्रमये यदि सदने, तृणमथ घटयति वदने । तदपि न मुञ्चति हत समवर्ती, निर्दय-पौरुषनर्ती ॥ २६ ॥ अर्थ-कोई वज्र से निर्मित घर में प्रवेश कर जाय, अथवा मुख में तृण धारण कर ले तो भी निर्दय बनकर अपने पौरुष का नाच करने वाला, तिरस्कार योग्य तथा सबको समान गिनने वाला यमराज किसी को नहीं छोड़ता है ।। २६ ।। शान्त सुधारस विवेचन-७१
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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