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________________ शान्तरस की प्राप्ति/शान्ति का अनुभव' अत्यन्त ही कठिन है और भावनाओं से भावित प्रात्मानों को शान्त रस का अनुभव सहज होता है।" संक्षेप में कह सकते हैं कि भावनाओं के वपन से उगे हुए अमृतफल में से टपकते हुए शान्तरस को जो ग्रहण करते हैं, उन्हीं को सुख का अनुभव होता है। __ अपने यहाँ तत्त्वार्थसूत्र/प्रशमरतियोगशास्त्र आदि अनेक ग्रन्थों में भावनाओं का वर्णन आता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में तो केवल भावनाओं का ही वर्णन है। मन को अशुभ विचार/अशुभ चिन्तन में से रोककर शुभ विचार/ शुभ चिन्तन की ओर मोड़ने की ताकत इन भावनाओं में है। सुबह से शाम तक मानव को अनेक अनुभव होते हैं और देखने/ नहीं देखने योग्य कई दृश्य मानव को देखने को मिलते हैं। यदि उन प्रसंगों को सही दृष्टिकोण से देखा जाय तो मानव का मन उन शुभ भावनाओं से रंजित बन सकता है, उसके लिए चाहिये-निर्मल मन और स्वच्छ दृष्टि । .... रोग से घिरी हुई काया को देखकर शरीर की नश्वरता का विचार कर सकते हैं तो किसी सुखी में से दुःखी बने व्यक्ति को देखकर उस धन/सम्पत्ति की क्षणिकता का भी विचार कर सकते हैं और देखना आता हो तो बिखरते हुए बादल और ढलते हुए सूरज को देखकर संसार की अनित्यता का भी विचार कर सकते हैं। ___संसार में सभी आत्माएँ एक या दूसरे भय से त्रस्त/संत्रस्त होती ही हैं और शारीरिक व मानसिक वेदनाओं से ग्रस्त होती हैं। भयभीत
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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