SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महात्मा ने कहा-'मेरी बात आज तू भले ही स्वीकार नहीं करेगा, किन्तु कुछ समय बाद तुझे सत्य की अनुभूति हो जाएगी। महात्मा ने आगे कहा--'कल पूनः मेरे पास पाना।" दूसरे दिन पुनः अमर महात्मा के पास पहुंच गया। महात्मा उसे जंगल में ले गए और उसे एक विशाल वृक्ष बताते हुए बोले--"देखो! इस वृक्ष के ऊपर कितने सारे पक्षी हैं ? सभी कल्लोल कर रहे हैं। पथिक भी पाकर इसकी छाया में विश्राम करते हैं और इसके मूल में सिंचन करते हैं। यहाँ इतने जीव-जन्तुओं का आगमन है, इसका कारण समझे ? अमर ने कहा--"नहीं।" महात्मा अमर के साथ कुछ आगे बढ़े एक सूखे, फल-फूल व पत्ते रहित एक वृक्ष के ठूठ को बताते हुए बोले- बोल अमर । इस वृक्ष के ऊपर एक भी पक्षी क्यों नहीं ? पथिक इसके नीचे विश्राम क्यों नहीं करते हैं? कोई आकर इसका जल-सिंचन क्यों नहीं करता है ? ... अमर ने कहा--"यह तो स्पष्ट बात है, जहाँ छाया नहीं, फल नहीं, वहाँ कौन आएगा ?" महात्मा ने कहा--"यही तो संसार की हालत है। जिस वृक्ष से कुछ पाने की प्राशा है, वहाँ सभी दौड़कर आते हैं और जहाँ पाने की आशा नहीं, वहाँ एक पंखी भो पास नहीं फटकता है। संसार भी इसो का प्रतिबिम्ब है। जो समृद्ध है, जो कुछ देता है, वहाँ सभी दौड़ते हैं, जिसके पास देने को कुछ नहीं, उसके पास कोई नहीं पाएगा, उससे कोई प्रेम नहीं करेगा।" शान्त सुधारस विवेचन-६४
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy