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________________ जन्म के साथ ही मृत्यु जुड़ी हुई है उस मृत्यु के आगमन के साथ ही नरकीट की स्थिति अत्यन्त दयनीय बन जाती है । प्रतापैर्व्यापन्नं गलितमथ तेजोभिरुदितै र्गतं धैर्योद्योगः श्लथितमथ पुष्टेन वपुषा । प्रवृत्तं तद्रव्यग्रहरणविषये बान्धवजन 60 जने कीनाशेन प्रसभमुपनीते निजवशम् ॥ २३ ॥ ( शिखरिणी ) विवेचन मृत्यु का सिरदर्द सबसे भयंकर है किसी कवि ने ठीक ही कहा है O श्रर्थ - यमराज जब किसी प्राणी को अपने फन्दे में फँसा देता है, तब उसका सारा अभिमान नष्ट हो जाता है, उसका तेज गलने लगता है, धैर्य और पुरुषार्थ समाप्त हो जाते हैं, उसका पुष्ट शरीर भी शीर्ण हो जाता है और बन्धुजन भी उसके धन को अपने कब्जे में करने लग जाते हैं ।। २३ ।। न गाती है, न गुनगुनाती है । मौत जब आती है, चुपके से चली आती है ॥ वास्तव में, मौत निश्चित होते हुए भी वह अनिश्चित है । श्राएगी जरूर, किन्तु कब आएगी ? इसका पता नहीं । मौत को अपनी आँखों के सामने देखते ही बलिष्ठ व्यक्ति भी शान्त सुधारस विवेचन- ५४
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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