SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशक की कलम से. . . . . . महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी द्वारा विरचित और परम पूज्य अध्यात्मयोगी नि:स्पृह शिरोमणि पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्यश्री के चरम शिष्यरत्न मुनिप्रवर श्री रत्नसेन विजयजी द्वारा विवेचित 'शान्त सुधारस-हिन्दी विवेचन' प्रथम भाग का प्रकाशन करते हुए हमें अत्यन्त ही हर्ष हो रहा है । __ 'शान्त-सुधारस' एक अनमोल ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में महोपाध्याय श्री विनय विजयजी म. ने गेयात्मक काव्य के रूप में अनित्य आदि बारह और मैत्री आदि चार भावनाओं का बहुत ही सुन्दर निरूपण किया है। ‘शान्त रस को रसाधिराज भी कहा गया है । अत्यन्त मधुर कण्ठ से इन गेय काव्यों को गाया जाय तो सुषुप्त चेतना में स्पन्दन हुए बिना नहीं रहता है। अनेक साधु-साध्वीजी इस ग्रन्थरत्न को कण्ठस्थ कर इसका स्वाध्याय भी करते हैं। विद्वद्वर्य मुनिश्री रत्नसेन विजयजी म. ने अत्यन्त ही परिश्रमपूर्वक बड़ी हो सरल व सुबोध भाषा-शैली में इस अद्भुत ग्रन्थ का हिन्दी विवेचन तैयार किया है, इस हेतु हम आपके अत्यन्त ही आभारी हैं । ग्रन्थ-प्रकाशन में सहयोगी महानुभावों का भी हम आभार मानते हैं । हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पूर्व प्रकाशनों की भांति यह प्रकाशन भी आपको रुचिकर लगेगा। इस ग्रन्थ के स्वाध्याय द्वारा सभी प्रात्माएं मुक्ति-प्रेमी बनकर प्रात्मकल्याण के पथ पर आगे बढ़ें; यही शुभेच्छा है।
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy