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________________ प्राप्ति हो जाती है, तब वह उसमें इतना लोन बन जाता है कि अपनी मृत्यु तक को भी भूल जाता है। उसे पता नहीं कि जिस वैभव के संग्रह के लिए खून का पसीना बहाया है, वह मृत्यु के समय उसे तनिक भी साथ देने वाला नहीं है। एक रूपक याद पा रहा है• एक अत्यन्त समृद्ध और सुसम्पन्न सेठ था। वैभव-विलास के साधनों को उसे कोई कमी नहीं थी। उसकी तिजोरी में अनेक हीरे, मोती, मारणक, रत्न व जवाहरात थे। उसके एक ही पुत्र था, जो अत्यन्त ही प्राज्ञांकित था। पत्नी अत्यन्त रूपवती और सुशीला थी। सेठजी के पास विशाल बंगला था। सेवा-शुश्रूषा के लिए काफी नौकर वर्ग भी था। एक दिन सेठ ने सोचा-"मेरा इतना बड़ा परिवार है, मेरे पास काफी समृद्धि भी है, किन्तु एक दिन तो मुझे यहाँ से विदाई लेनी ही पड़ेगी, अतः इनकी जरा परीक्षा तो कर लूँ कि इनमें से कौन-कौन मेरे साथ चलेगा?" सेठ पहुँच गए अपनी तिजोरी के पास । तिजोरी में सैकड़ों रुपये थे, हीरे थे, मोती थे, माणक थे और स्वर्ण के जेवर भी थे। - सेठ ने कहा- "बोलो, कुछ ही दिनों के बाद मैं यहाँ से चिर विदाई ले लूगा, तब तुममें से मेरे साथ कौन-कौन कहाँ तक चलेगा ?" हीरे-मोती-मारणक आदि सभी ने मिलकर एक ही आवाज में कहा--"सेठजी! आप इस बात के लिए आए हैं क्या ? तो छोड़िये इस बात को। हमें इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है।" शान्त सुधारस विवेचन-४७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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