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________________ है और सजा से मुक्त हो सकता है, किन्तु यमराज का त्रिभुवन में एकछत्र साम्राज्य है, उसके जाल से मुक्त होना असम्भव ही है । जो कर्म से मुक्त बन चुके हैं उन मुक्तात्माओं पर ही यमराज का साम्राज्य नहीं है, बाकी तो सभी कर्मयुक्त आत्माएँ यमराज के आधीन ही हैं। अतः जीवन की इस अनित्यता को समझ, यमराज के चंगुल में से सदा के लिए मुक्त बन सके, ऐसे सिद्ध-पद की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करने से ही यह जीवन सार्थक बन सकता है। नित्यमेकं चिदानन्दमयमात्मनो, रूपमभिरूप्य सुखमनुभवेयम् । प्रशमरसनवसुधापानविनयोत्सवो, __ भवतु सततं सतामिह भवेऽयम् ॥ मूढ० २० ॥ अर्थ--प्रात्मा के चिदानन्दमय स्वरूप को जानकर नित्य उस . सुख का अनुभव करो। इस भव में प्रशमरस रूपी नवीन अमृत के पानरूप उत्सव सज्जन पुरुषों के लिए हमेशा होवें ।। २० ।। विवेचन प्रात्मा की अमरता ___ संसार अनित्य है, संसार के पदार्थ अनित्य हैं। जीवन अनित्य है, वैभव - विलास अनित्य हैं। भोग - सुख अनित्य हैं । इस संसार के समस्त बाह्य पदार्थ अनित्य हैं। अतः प्रश्न खड़ा होता है कि सब कुछ अनित्य है तो क्या किया जाय ? शान्त सुधारस विवेचन-४३
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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