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________________ अर्थ-जिनके साथ हमने क्रीड़ा की, जिनके साथ सेवा-पूजा की और जिनके साथ प्रेम भरी बातें कीं, उन लोगों को भस्मसात् होते देखते हुए भी हम निश्चिन्त होकर खड़े हैं, अहो ! हमारे इस प्रमाद को धिक्कार हो ।। १७ ।। विवेचन संसार के सभी सुख नाशवंत हैं पदार्थ, सुख तथा जीवन की अनित्यता के दर्शन कराकर पूज्य उपाध्यायजी म. अब हमें स्वजन की ममता-त्याग के लिए उनकी अनित्यता बतलाते हुए फरमाते हैं हे मूढ़ पात्मन् ! अपने स्वजन के मोह में तू इतना मुग्ध बना है, किन्तु जरा विचार कर। जिनके साथ तूने अपना बचपन बिताया, जिनके साथ तूने नाना प्रकार के खेल खेले, उन सब परम प्रिय दोस्तों को भी तूने श्मशान में राख होते हुए देखा, अनेक की शव-यात्रा में भी तू शामिल हुआ। अनेक की चिता में आग भी तूने अपने हाथों से प्रज्वलित की। उन सबके देह-विनाश का तूने प्रत्यक्ष अवलोकन किया। परन्तु फिर भी आश्चर्य है कि तू अपनी ही मौत को भूल गया। अनेक को मरते हुए जरूर देखा, परन्तु उनकी मृत्यु के दर्शन से तुझे अपने जीवन की अनित्यता का भान नहीं हुआ, बल्कि अधिकाधिक विलासिता के गर्त में तू डूबता गया। बचपन के कई साथी मौत के मुंह में चले गए। अपने से ज्येष्ठ व पूज्य व्यक्तियों को भी तूने मरते हुए देखा, परन्तु फिर भी तुझे इस संसार के प्रति लेश भी विरक्ति नहीं हुई। शान्त सुधारस विवेचन-३७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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