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( 3 ) घ्राणेन्द्रिय के विषय में आसक्त भ्रमर कमल के अन्दर ही बंद हो मृत्यु को प्राप्त होता है ।
( 4 ) रूप के गुलाम उस पतंगे की परिस्थिति से तो आप कहाँ अपरिचित हो ? बेचारा अग्नि में स्वाहा हो जाता है ।
( 5 ) और उस मधुर संगीत में प्रासक्त हिरण की हालत तो देखो। शिकारी के बारण से बिंध जाता है ।
जब एक-एक इन्द्रिय की पराधीनता का भी मौत व जीवनपर्यंत गुलामी का परिणाम हो सकता है, तो फिर जो मानव पाँच इन्द्रियों के विषयों में प्रासक्त होगा, उसकी क्या हालत होगी ?
.....और जरा, कविवर की बात भी ध्यान से सुन लें, लें, वे कहते हैं
इन्द्रिय-विषय के सुख तो हाथ-ताली देते-देते नष्ट हो जाने वाले हैं | आषाढ़ी मेघ से जब आकाश घिरा हुआ होता है और उस समय जब मेघ घनघोर गर्जना करते हैं, उसी बीच कभी-कभी बिजली चमक उठती है । उस बिजली का प्रकाश अत्यन्त तेजस्वी होता है, परन्तु उसका अस्तित्व ? प्रोह ! एक क्षण भर में ही वह गायब हो जाती है । बस, इन्द्रिय के विषय भी बिजली की चमक की भाँति क्षरण विनश्वर जानने चाहिये ।
हन्त हतयौवनं पुच्छमिव शौवनम्, कुटिलमति तदपि लघुदृष्टनष्टम् । तेन बत परवशाः परवशाहतधियः,
कटुकमिह कि न कलयन्ति कष्टम् ।। मूढ... १४ ॥
शान्त सुधारस विवेचन- २६