SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकता है, परन्तु मोह से मूढ़ बनी आत्मा इस जीवन की क्षणिकता के साथ-साथ इसकी महत्ता को नहीं समझ पाती है । प्रतः कविवर 'मूढ़' शब्द से अपनी आत्मा को सम्बोधित कर रहे हैं और जागृत बनने के लिए प्रेरणा कर रहे हैं । पश्य भङ्गुरमिदं विषयसुखसौहृदम्, पश्यतामेव नश्यति सहासम् । एतदनुहरति संसाररूपं रया ज्जलदजलबालिका रुचिविलासम् ॥ मूढ... १३ ॥ अर्थ-जरा देख ! विषयजन्य सुख के साथ तेरी मित्रता है, वह तो नाशवन्त है और वह तो देखते-देखते ही मजाक करते हुए नष्ट हो जाती है और यह संसार का स्वरूप तो बिजली की चमक का अनुसरण करने वाला है ।। १३ ॥ . विवेचन इन्द्रियसुख विनश्वर है अधिकांशतः दुनिया का आकर्षण इन्द्रियसुख को पाने के लिए है कान को चाहिये-सुमधुर कर्णप्रिय संगीत । आँख को चाहिये-मनोहर रूप-सौन्दर्य दर्शन । नाक को चाहिये-इत्र व सुगन्धित फूलों की खुशबू । जीभ को चाहिये-स्वादिष्ट व चटपटा भोजन । त्वचा को चाहिये-सुकोमल 'डनलप' की शय्या। शान्त सुधारस विवेचन-२७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy