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________________ विवेचन सद्भावनाएँ कल्पलताएँ हैं श्रुतज्ञान के अतिशय से जिसका विवेक निर्मल बन चुका है, उसके लिए लोकोत्तर प्रशमसुख को जन्म देने वाली सद्भावनाएँ दूर नहीं हैं। अविवेकी व्यक्ति इन भावनाओं का अभ्यास नहीं कर सकता है। भावनाओं के अभ्यास के लिए विवेक की अत्यन्त आवश्यकता रहती है। अविवेकी और मूढ़ व्यक्ति अज्ञानता के रोग से ग्रस्त होता है। वह इन भावनाओं का मूल्यांकन कर ही नहीं सकता है। विवेकी व्यक्ति ही इन भावनाओं का वास्तविक मूल्यांकन कर सकता है और फिर इन भावनाओं से अपनी आत्मा को भावित कर सकता है। इन भावनाओं के अभ्यास से पौद्गलिक आसक्ति क्षीण होने लगती है। इन्द्रियों के सानुकूल विषयों के प्रति भी हृदय में वैराग्य प्रगट होता है और उस वैराग्य के कारण आत्मा में प्रशम सुख का जन्म होता है। सद्भावनाओं के अभ्यास से प्राप्त लोकोत्तर प्रशमसुख, चक्रवर्ती और इन्द्र के लिए भी दुर्लभ है। 'प्रशमरति' में कहा गया है किप्रशमितवेदकषायस्य हास्यरत्यरतिशोकनिभृतस्य । भयकुत्सानिरभिमवस्य , यत्सुखं तत्कुतोऽन्येषाम् ॥ १२६ ॥ शान्त सुधारस विवेचन-११
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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