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________________ अर्थ-यह तप कर्मरूप व्याधि की प्रौषध है और जिनेश्वर का मत उसका अनुपान है। हे विनय ! सुख के निधान स्वरूप शान्त सुधारस का पान करो ॥ १२४ ॥ विवेचन कर्मरोग की औषध तप है मात्मा को अनादिकाल से कर्म का रोग लगा हुआ है। उस रोग को दूर करने की एकमात्र औषधि तप ही है। इस औषधि का जिसने सेवन किया, वह अल्प भवों में ही कर्मरोग से मुक्त बन गया और जिसने इस औषधि की उपेक्षा की, वह कर्म के रोग में सड़ता रहा है। आयुर्वेदिक औषधि के साथ अनुपान लेने की आवश्यकता रहती है। जिनेश्वर का मत, तप रूप औषधि का अनुपान है। प्रौषध का सेवन तभी सफल बनता है, जब अनुपान सानुकूल है । प्रतिकूल अनुपान से रोग-शमन के बजाय रोग का उपद्रव तीव्र हो जाता है। ___ औषधि-अनुपान के मिश्रण से रोग-नाश शीघ्र होता है, इसी प्रकार जिनेश्वर मत की आज्ञानुसार तप का प्राचरण करने से आत्मा को लगा हुआ कर्म का रोग शीघ्र नाश पाता है। हे आत्मन् ! समस्त सुखों के निधान स्वरूप शान्त सुधारस का तू अमृत पान कर। इस अमृतपान में तुझे परम आनन्द और शान्ति का अनुभव होगा। शान्त सुधारस विवेचन-३०६
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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