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________________ (३) चारित्र विनय-चारित्र की श्रद्धा करना, उसकी स्पर्शना करना, उसके प्रति आदर रखना, पालन करना तथा चारित्र की प्ररूपणा करना इत्यादि । (४-५-६) योग विनय-मन, वचन और काया को आचार्य आदि की भक्ति में प्रवृत्त करना । (७) उपचार विनय-गुरु आदि के पास रहना, उनकी इच्छा का अनुसरण करना। गुरु के लिए आहार लाना, उन्हें आहार प्रदान करना, उनकी औषधि आदि से परिचर्या करना, अवसरोचित आचरण करना तथा गुरु के कार्य में तत्पर रहना, इत्यादि। 3. वैयावच्च-वैयावच्च अर्थात् सेवा शुश्रूषादि । १. प्राचार्य २. उपाध्याय ३. तपस्वी ४. स्थविर ५. ग्लान ६. नूतन दीक्षित ७. सार्मिक ८. कुल ६. गण और १०. संघ की सेवा-भक्ति करना। 4. स्वाध्याय-इसके ५ भेद हैं (१) वाचना-किसी साधु प्रादि को पढ़ाना या स्वयं पढ़ना। (२) पृच्छना-प्रध्ययन में जो शंकास्पद स्थल हों, उनका गुरु से निराकरण करना। (३) परावर्तना-याद किए पाठ का पुनरावर्तन करना। (४) अनुप्रेक्षा-धारण किए अर्थ का चिन्तन करना । (५) धर्मकथा-धर्म का उपदेश देना। शान्त सुधारस विवेचन-३००
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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